विदुर के बारे में तथ्य:-


विदुर नीति
विदुर के बारे में तथ्य:-

‘महाभारत’ की कथा के महत्त्वपूर्ण पात्र विदुर कौरव-वंश की गाथा में अपना विशेष स्थान रखते हैं। और विदुर नीति जीवन-युद्ध की नीति ही नहीं, जीवन-प्रेम, जीवन-व्यवहार की नीति के रूप में अपना विशेष स्थान रखती है।
राज्य-व्यवस्था, व्यवहार और दिशा निर्देशक सिद्धांत वाक्यों को विस्तार से प्रस्तावना करने वाली नीतियों में जहां चाणक्य नीति का नामोल्लेख होता है, वहां सत्-असत् का स्पष्ट निर्देश और विवेचन की दृष्टि से विदुर-नीति का विशेष महत्त्व है। व्यक्ति वैयक्तिक अपेक्षाओं से जुड़कर अनेक बार नितान्त व्यक्तिगत, एकेंद्रीय और स्वार्थी हो जाता है, वहीं वह वैक्तिक अपेक्षाओं के दायरे से बाहर  एक को अनेक के साथ तोड़कर, सत्-असत् का विचार करते हुए समष्टिगत भाव से समाज केंद्रीय या बहुकेंद्रीय होकर परार्थी हो जाता है।

 ‘स्व’ का ‘पर’ विस्तार रही सत्य में मनुष्य धर्म का प्रमुखतः अपेक्षित पक्ष होता है। चाणक्य ने इसे स्पष्टतया समाज धर्म के आलोक में देख-परख कर प्रस्तुत किया है और विदुर ने अपने समय के संदर्भ में न्यायसंगत पक्षधरता के साथ निर्भय होकर व्यक्त किया है। चाणक्य निर्णायक स्थिति में व्याख्याता थे, जब कि विदुर अपनी वैयक्तिक-स्थितिगत सीमाओं से परिचित, परिचालित विनम्र निवेदन के रूप में प्रस्तावना करते हैं। चाणक्य में निर्देश एवं आदेश का भाव है, जबकि विदुर अपने विचार सत् परामर्श के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

विदुर एक तरह से हस्तिनापुर राज-परिवार का सदस्य होकर ही दासी पुत्र के नाते अधिकार-रूप में कुछ भी कह पाने की दशा में नहीं थे। यह तो राजपरिवार का अनुग्रह और विदुर का तटस्थ सत्य स्थापन, ज्ञान और धर्म में रुचि का प्रभाव था कि सामान्य होकर भी उन्हें विशिष्ट रूप में उन्हें सदैव सम्मान मिला। भीष्म, माता सत्यवती, धृतराष्ट्र अपने जीवनकाल तक पाण्डु, युधिष्ठिर आदि भाई, कृष्ण, गान्धारी, कुन्ती और आचार्य द्रोण, कृपाचार्य आदि सभी उनको यथोचित मान-सम्मान देते रहे और विदुर भी समय-समय पर अपने सत् परामर्श से हस्तिनापुर राज्य की यथा संभव सेवा करते रहे।

विदुर कौन थे ? यह प्रश्न स्वयंमेव विदुर की स्थिति को प्रकट करने वाला सबल पक्ष है। हम इसी तथ्य से भली भांति परिचित हैं कि हस्तिनापुर के महाराज शान्तनु का निषाद पुत्री सत्यवती के प्रति आसक्ति और उनके विवाह में निषाद की यह शर्त कि सत्यवती का पुत्र ही युवराज  क्रमशः-

आगे आप पढ़ेंगे विदुर नीति भाग एक
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